जिंदगी पर कविता | Hindi Me Kavita on Life
कोई आता है, द्वार खटखटाता है,
भीतर आता है, स्नेह दर्शाता है,
हक़ जताता है,मुस्कराता है,
तो मन डर जाता है,
कि यही व्यक्ति किसी दिन आएगा,
रूठ जायेगा, हक़ छीन लेगा,
रोष दिखायेगा,और चला जायेगा,
क्यों डर की छाप है मन पर अतीत की,
जिसमे कुछ अन्य लोगों की दुष्टता, क्रुद्धता,हृदय हीनता की तस्वीर है,
जिससे आज तक उबरा नहीं है मन,शांत नहीं है हृदय भवन,
और वही उर्मियाँ कर उमड़ घुमड़ उत्पन्न कर रहीं है जीवन में तूफ़ान, बवंडर,तपन.
जो मेरी जिजीविषा को प्रतिपल चुनौती देता है,मैं थकती हूँ,हारती हूँ, सत्य को स्वीकारना
चाहती हूँ, परन्तु मिथ्या नहीं नकारती हूँ.
और पुनः आ जाती हूँ संदेह के घेरे में, हो जाती हूँ संशयों के दुर्ग में बंद,
परन्तु आज में प्रण करना चाहती हूँ स्वयं से,
कि मै मुस्कराऊँगी,
जब भी कोई मुस्कराएगा,
मै उस हक़ को स्वीकार कर स्वयं भी हक़ जताऊँगी,
स्नेह दर्शाऊँगी,
और जिन संस्कारों से सींचा है मेरे परिवार ने,
उसकी सुवास फैलाऊँगी.
और निर्भय होकर हर नव आगंतुक के सम्मान में
पलकें बिछाऊँगी,
और मानवीय संबंधों ,संवेदनाओं, पुनीत रिश्तों से
गर्वित,हर्षित व संपन्न होकर निर्भयता का शंख बजाऊंगी.
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जिंदगी पर कविता | Hindi Me Kavita on Life