उठो कि जश्न-ए-खज़ां हम मनाएं जी भर के
बहार आए गुलिस्तां में कब खुदा जाने
– ज़ेहरा निगाह
दिल में उमंग और इरादा कोई तो हो
बे-कै$फ जि़ंदगी में तमाशा कोई तो हो।
-खलील मामून
कांधों पे सरों पे दोनों हाथों में कलस
मद-अंखडिय़ों में सीनों में भरपूर उमंग।
– फराक गोरखपुरी
रग-रग एक तसव्वुर एक उमंग भरे
एक खुशबू फूलों में क्या-क्या रंग भरे।
– खालिद अहमद
फपकते हैं दर$ख्त जो ये मेरी ही उमंग है
फुदकते हैं परिंदे सब मुझी से ये तरंग है।
-वहीदुद्दीन सलीम
इक पतिंगे ने ये अपने रक्स-ए-आखर में कहा
रोशनी के साथ रहिए रोशनी बन जाइए।
-सलीम अहमद
है रोशनी ही रोशनी मंज़र नहीं कोई
सूरज लटक रहे हैं जहां देखता हूं मैं।
-आशुफ्ता चंगेज़ी
सूरज के उजालों में चरागां नहीं मुमकिन
सूरज को बुझा दो कि ज़मीं जश्न मनाए।
-हिमायत अली शायर
बुझते हुए चरा$ग फरोज़ां करेंगे हम
तुम आओगे तो जश्न-ए- चरागां करेंगे हम।
-वासिफ देहलवी
कुछ और बढ़ गई है अंधेरों की जि़ंदगी
यूं ही हुआ है जश्न-ए- चराग़ां कभी-कभी।
-काबिल अजमेरी
नज़र वो लोग उजाले में खुद न आए कभी
बुला रहे हैं जो दुनिया को रोशनी की तर$फ।
-अदीब सहारनपुरी
न साथ देंगी ये दम तोड़ती शमाएं
नए चरा$ग जलाओ कि रोशनी कम है।
-शाहिद सिद्दीकी
रिश्तों का एतिबार वफाओं का इंतज़ार
हम भी चराग लेके हवाओं में आए हैं।
-निदा फाजली
खुद चराग बन के जल वक्त के अंधेरे में
भीक के उजालों से रोशनी नहीं होती।
-हस्तीमल हस्ती
जहां रहेगा वहीं रोशनी लुटाएगा
किसी चराग का अपना मकां नहीं होता।
-वसीम बरेलवी
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