जिंदगी पर कविता | Hindi Me Kavita on Life
मौन होने के उपरान्त भी कितने स्वर गूंजते रहे,
उच्चारित होने के बाद भी कितने शब्द मौन होकर ऊंघते रहे.
कहीं मूक वाणी,कहीं वाचाल भाषा,
प्रायः परिवर्तित कर देती है समय की परिभाषा.
निर्झर कलकल की भांति शब्द कुछ परस्पर वार्तालाप करते रहे.
कुछ उच्चारित होने की अभिलाषा में संघर्ष स्वयं से करते रहे.
जिन स्वरों को गूंजने कीअनुमति न दी हृदय ने,
वो अश्रु बन कर उद्गार के रूप में झरते रहे.
जिस गाम्भीर्य पर गंभीरता से कभी विचार न किया,
वो विचार हृदय से बाहर आने को तरसते रहे.
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जिंदगी पर कविता | Hindi Me Kavita on Life