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जिंदगी पर कविता

सब कुछ पा लिया,अपना लिया,
पर अपनाया न गया अपनत्व
इतनी खुशियां किसी को न मिली होंगी कदाचित,
इतना विलक्षण न होगा किसी का व्यक्तित्व.
जो चाहा वो मिला,सदैव अपने लिए,
क्योंकि सदैव लिप्त रहा मुझमें मेरा स्वत्व.
कुछ ऐसे ही बातें सोचने पर घबरा जाती हूँ मैं,
क्योंकि मैंने स्वयं में पाया है अन्यों से पृथक्त्व,
अपने आप पर लिखे गए अपने विचार ही,
अभिलाषा रखते हैं पाने की सुपरिभाषित व्यक्तित्व,
इस कामना की पूर्ति हेतु पर्याप्त नहीं जीवन एक,
हर पल को जीना है एक जीवन जितना यदि पाना है ऐसा अमरत्व.

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