How to get Home Loan Complete Process

लोन लेने का प्रॉसेस

-ऐप्लिकेशन भरना
-जरूरी डॉक्युमेंट्स के साथ ऐप्लिकेशन फॉर्म जमा किया जाता है। जरूरी कागजात ये हैं-
आइडेंटिटी प्रूफ-फोटो, क्रेडिट कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट, वोटर आईडी आदि में से कोई एक।

रेजिडेंस प्रूफ :
रेंटल एग्रीमेंट, पासपोर्ट, राशन कार्ड, डीएल।
इनकम प्रूफ:
इनकम टैक्स रिटर्न की पिछले तीन साल की कॉपी, फॉर्म16ए, पिछले तीन महीने की सैलरी स्लिप, पिछले महीने की बैंक
स्टेटमेंट।

एम्प्लॉयमेंट डिटेल:
अगर कंपनी जानी मानी नहीं है तो कंपनी का लेटर।
प्रॉसेसिंग फीस: एप्लिकेशन फॉर्म जमा करने के वक्त बैंक कस्टमर से प्रॉसेसिंग फीस भी चार्ज करता है। यह अमूमन लोन की कुल रकम का .50 से 1 फीसदी होता है।

खास बात:
कुछ बैंक प्रॉसेसिंग फीस को लेकर फ्लेक्सिबल होते हैं। लोन एप्लाई करते वक्त ज्यादा से ज्यादा प्रूफ पेश करें। इससे आपका केस स्ट्रॉन्ग होता है।

पर्सनल वेरिफिकेशन:
ऐप्लिकेशन जमा करने के एक या दो दिन बाद बैंक आपके द्वारा दी गई सभी सूचनाओं को वेरिफाई करता है। कस्टमर की इनकम, अड्रेस, आइडेंटिटी आदि जांचने का काम किया जाता है।

खास बात:
इस प्रॉसेस में बैंक कई बार कॉल करके आपका वेरिफिकेशन कर सकता है। इसलिए इस प्रॉसेस को पूरा करने के लिए थोड़ा वक्त निकालकर रखें और बार-बार कॉल आने पर चिढ़ें नहीं।

अप्रूवल:
आपके द्वारा दी गई जानकारी और उसके वेरिफिकेशन से अगर बैंक संतुष्ट है तो वह आपके लोन को हरी झंडी दिखा देगा, नहीं तो उसे रिजेक्ट कर देगा। कस्टमर की रीपेमेंट केपैसिटी का आकलन करके यह भी तय कर लिया जाता है कि उसे कितना अमाउंट सैंक्शन होगा।
ऑफर लेटर
इसके बाद बैंक तमाम सूचनाओं के साथ कस्टमर को  ऑफर लेटर देता है, जिसकी एक कॉपी को साइन करके कस्टमर बैंक को लौटाता है।

खास बात:
ऑफर लेटर में दी गई लोन अमाउंट, अवधि और ब्याज दर को चेक कर लें कि क्या वह वही है जो आपके साथ तय की गई थी। ब्याज की दर पर कुछ मोलभाव किया जा सकता है।

प्रॉपर्टी वेरिफिकेशन:
इसके बाद बैंक आपकी प्रॉपर्टी की कानूनी वैधता को चेक करता है। अपने लीगल डिपार्टमेंट की मदद से बैंक प्रॉपर्टी के सभी ओरिजनल डॉक्युमेंट्स को वेरिफाई करके यह सुनिश्चित करता है कि प्रॉपर्टी हर तरीके से कानूनी है। इसके बाद बैंक अपने एक्सपट्र्स को साइट पर भेजकर भी प्रॉपर्टी का  वेरिफि केशन कराते हैं और उसके बाद वैल्यूअर प्रॉपर्टी का वैल्यूएशन करता है।

खास बात:
यह महत्वपूर्ण पॉइंट है। हर कस्टमर को
कराना चाहिए। कई बार बैंक लीगल वेरिफि केशन के लिए कस्टमर से चार्ज करते हैं। इसके लिए
मोलभाव कर सकते हैं। अगर लीगल वेरिफि केशन के बाद बैंक लोन ओके कर देता है तो कस्टमर को खुश हो जाना चाहिए क्योंकि इसका मतलब है कि उसके द्वारा ली जा रही प्रॉपर्टी कानूनी रूप से पूरी तरह सेफ  है।

अग्रीमेंट साइन
इसके बाद लोन अग्रीमेंट साइन हो जाता है और प्रॉपर्टी के कस्टमर्स के पक्ष में ट्रांसफर होने के ऑरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं। इसके बाद बैंक इस बात के प्रूफ मांगता है कि प्रॉपर्टी खरीदने के लिए लोन के अलावा जो रकम आपको देनी है वह आपने पे कर दी है। बैंक कस्टमर से 36 पोस्ट डेटेड चेक भी जमा कराता है जिनसे रीपेमेंट होता रहे।

खास बात:
ध्यान रखें लोन अमाउंट का जो चेक बैंक इशू करेगा, वह प्रॉपर्टी बेचने वाले के नाम होगा,कस्टमर के नाम नहीं। ज्यादातर बैंक उसी दिन से ब्याज लेना शुरू कर देते हैं जिस दिन चेक इशू होता है। आपको चेक कब सौंपा गया इससे कोई लेना देना नहीं है। इसलिए जिस दिन चेक इशू हो कोशिश करनी चाहिए कि उसी दिन उसे बैंक से ले लिया जाए। प्रॉपर्टी के ऑरिजनल कागजात बैंक में जमा हो जाते हैं इसलिए इन कागजात की फोटो स्टेट कॉपी अपने पास जरूर रख लें।

डिस्बर्समेंट
अगर प्रॉपर्टी रेडी टु पजेशन है तो लोन एक बार में ही डिस्बर्स हो जाता है लेकिन अगर अंडर कंस्ट्रक्शन है तो लोन अमाउंट का डिस्बर्समेंट कई हिस्सों में होता है। अगर डिस्बर्समेंट कई हिस्सों में होना है तो बैंक पहले हिस्से के भुगतान के बाद तुरंत ईएमआई शुरू नहीं करता। ईएमआई तब शुरू होती है, जब पूरे अमाउंट का भुगतान हो जाता है। ऐसे में बैंक भुगतान की गई रकम पर तब तक साधारण ब्याज चार्ज करता है, जब तक पूरी रकम का डिस्बर्समेंट नहीं हो जाता। इसे प्री ईएमआई कहा जाता है। इसके लिए बैंक आमतौर पर छह पोस्टडेटेड चेक लेते हैं।

खास बात:

प्रीईएमआई समय से अदा करना सुनिश्चित करें, नहीं तो बैंक लेट फीस चार्ज कर सकता है।

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