साहिल काफी हंसमुख व्यक्ति था. पढ़ा लिखा, मध्यम वर्गीय परिवार से लेकिन महत्त्वाकांक्षी साथ ही साथ आदर्शवादी.कभी दोस्तों में बात होती तो कहता कि उसके जीवन में आदर्शों का अधिक महत्त्व है. इन्ही आदर्शो की खातिर उसने एक दिव्यांग लड़की गरिमा से शादी कर ली और आदर्शवादी व्यक्ति की मानो उस पर मुहर लग गयी.
दोस्तों ने,समाज ने उसे बहुत सराहा. परिवार वाले दुखी थे कि क्या कमी थी हमारे बेटे में जो ऐसी लड़की से शादी की. साहिल ने आदर्शों की दुहाई दी.और कहा कि अगर यह सब शादी के बाद हो जाता तो या यदि मै ऐसे होता तो आपकी क्या सोच होती ? भला सोचो तो कि लड़की के परिवार वालों के मन से कितना बोझ उतर गया होगा. यह सब बातें शुरू- शुरू में आदर्शवाद की थी बाद में यह सब लड़की के ऊपर एहसान बनता चला गया कि अगर मै तुमसे शादी न करता तो तुम्हें कौन ब्याह के ले जाता ?
Inspiring Short Story in Hindi
लड़की ताने सुनने की अभ्यस्त होती जा रही थी और चारा भी क्या था? वह अपनी गृहस्थी ख़राब नहीं करना चाहती थी. Hindi Story वास्तव में एहसान तो था ही साहिल का गरिमा और उसके परिवार वालों पर. वह खामोश रहती. पर धीरे धीरे एहसान की बातें भी फ़्रस्ट्रेशन और कुंठा में बदलती जा रही थी. साहिल को लगता था कि उसके दोस्तों की पत्नियां सुन्दर परियों सी हैं और कहाँ से यह लाचार, मोहताज़ लड़की मेरे पल्ले पड़ गयी. आदर्शवाद और उसूल यह सब बेमानी होते जा रहे थे.
उसका मन होता था कि वह घर ही न जाये.घर जाते ही पत्नी से लड़ाई झगड़ा शुरू हो जाता, ‘तुम से कुछ भी ठीक से नहीं होता. तुम्हारी वजह से ही मैं तरक्की नहीं कर पा रहा. आदि आदि. तुम मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा ग्रहण हो. गरिमा सब ख़ामोशी से सुनती रहती. पैसे या चीज़ों के लिए कभी कोई मांग न करती. फिर भी साहिल उसे कोसने में लगा रहता. ‘तुम पर, तुम्हारी दवाईयों, तुम्हारे इलाज पर कितना खर्च हो जाता है, कुछ अन्दाज़ा भी है तुम्हे.’ और फिर से एहसान का पोटला उसके सर पर रख देता. आखिर गरिमा ने विकलांग कोटा से आवेदन दियाऔर अच्छी नौकरी में उसका चयन हो गया. उसका पद,सैलरी सब साहिल के पद और सैलरी से कहीं बेहतर थे. आदर्शवाद की रीढ़ की हड्डी अब तो पूर्णतया चरमरा गयी.
आदर्शवादी होने का अहंकार अब और भी चूर होता जा रहा था. अपनी श्रेष्ठता के बावजूद अच्छी नौकरी न होने का दंश उसके आदर्शवादी होने के अहंकार पर और भी चोट कर रहा था.जहाँ वह हीन भावना से ग्रस्त था वहीँ उसकी पत्नी गौरव और स्वाभिमान से परिपूर्ण. उसने अपने पति से कहा मैं तो शारीरिक रूप से विकलांग हूँ,मन और आत्मा से नहीं. और आप तो शरीर से भी समर्थ हैं फिर मन और आत्मा से इतने कमज़ोर क्यों?
यदि आप मुझे नहीं चाहते तो मैं आपकी ज़िन्दगी से चली जाती हूँ और आप दूसरी शादी कर लीजिये. अभी तो हमारे कोई संतान भी नहीं है’.सहसा उसका चरमराया हुआ आदर्शवाद अस्तित्व में आया और आँखें आंसुओं से छलक उठी. उसने अपनी पत्नी से माफ़ी मांगी और कहा ‘मुझे तुम्हारा सहारा बनना चाहिए था जबकि तुम मुझे सँभाल रही हो उस पर से त्याग भावना से परिपूर्ण हो.आज के बाद मैं तुमसे कभी गलत तरीके का व्यवहार नहीं करूँगा.’
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दोनों छलकती आँखों में मुस्कुराये और जीवन में एक दूसरे का साथ निभाने की आज फिर से कसम ली. आदर्शों और उसूलों ने साहिल को जीवन की भयंकर भूल करने से बचा लिया था.
कभी कभी हमारे उसूल , कायदे और आदर्श हमें कमज़ोर बना देते हैं मानसिक या भावनात्मक तौर पर. अगर ऐसा कुछ है तो ऐसे आदर्शों और उसूलों से दूर रहिये.ऐसी उसूलवादी इमेज के खतरे से स्वयं को बचाइए और वही कीजिये जो एक इंसान होने के नाते आपको करना चाहिए. समाज उत्थान का ठेका लेकर अपने ऊपर आदर्शवादी इंसान होने की मुहर लगाकर भीतर ही भीतर कुंठाग्रस्त होकर जलने भुनने से अच्छा है ऐसे विकल्प चुनना जो आपके जीवन को सरल बनाते हैं अथवा तो अपने आदर्शों पर कायम रहते हुए हर चुनौती को स्वीकार करना और विजयी होना, निर्णय आपका है, आपको चयन करना है क्योंकि जीवन आपका है