जिंदगी पर कविता | Hindi Me Kavita on Life
डगमगाते क़दमों को संभालते संभालते,
निकल पड़ी मंज़िल पाने.
उलझी उलझी राहों पर विजय श्री की पताका फहराने,
भटकती सी राहों पर फैली सी निगाहें,
मंज़िल करीब तो तब हों जब ज्ञात हो राहें.
न कोई मोड़, न कोई छोर, यह कैसा मायाजाल है,
जिधर रास्ता दिखता है, वहां दानवी कराल है,
यह कैसे है विपदा, कैसे है व्यथा,
किसी के श्रवण के लिए उपयुक्त नहीं कथा
मेरी इच्छा पूर्ति के लिए, मैं प्रयास सतत करती रही;
रुकी नहीं, झुकी नहीं, थकी नहीं; अनवरत आगे बढ़ती रही.
जिंदगी पर कविता | Hindi Me Kavita on Life