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Panchtantra ki kahani Bagula Bhagat Aur Kekda

पंचतंत्र की कहानी : बगुला भगत | बगुला भगत और केकड़ा

किसी स्थान पर एक बहुत बड़ा तालाब था। वहीं एक बूढ़ा बगुला भी रहता था। बुढ़ापे के कारण वह कमजोर हो गया था। इस कारण मछलियां पकड़ने में असमर्थ था। वह तालाब के किनारे बैठकर, भूख से व्याकुल होकर आंसू बहाता रहता था।

शिक्षा

जिसके पास बुद्धि है, उसी के पास बल भी होता है।
एक बार एक केकड़ा बगुले के पास आया। बगुले को उदास देखकर उसने पूछा, ‘मामा, तुम रो क्यों रहे हो? क्या तुमने आजकल खाना-पीना छोड़ दिया है? अचानक यह क्या हो गया?’बगुले ने बताया- ‘पुत्र, मेरा जन्म इसी तालाब के पास हुआ था। यहीं मैंने इतनी उम्र बिताई। अब मैंने सुना है कि यहां बारह वर्षों तक पानी नहीं बरसेगा।’
केकड़े ने पूछा, ‘तुमसे ऐसा किसने कहा है?’बगुले ने कहा- ‘मुझे एक ज्योतिषी ने यह बात बताई है। इस तालाब में पानी पहले ही कम है। शेष पानी भी जल्दी ही सूख जाएगा। तालाब के सूख जाने पर इसमें रहने वाले प्राणी भी मर जाएंगे। इसी कारण मैं परेशान हूं।’
बगुले की यह बात केकड़े ने सभी मछलियों और अन्य साथियों को बताई। वे सब बगुले के पास पहुंचे। उन्होंने बगुले से पूछा-‘मामा, ऐसा कोई उपाय बताओ, जिससे हम सब बच सकें।’बगुले ने बताया-‘यहां से कुछ दूर एक बड़ा सरोवर है। यदि तुम लोग वहां जाओ तो तुम्हारे प्राणों की रक्षा हो सकती है।’सभी ने एक साथ पूछा-‘हम उस सरोवर तक पहुंचेंगे कैसे?’

चालाक बगुले ने कहा-‘मैं तो अब बूढ़ा हो गया हूं। तुम लोग चाहो तो मैं तुम्हें पीठ पर बैठाकर उस तालाब तक ले जा सकता हूं।’सभी बगुले की पीठ पर चढ़कर दूसरे तालाब में जाने के लिए तैयार हो गए।

दुष्ट बगुला प्रतिदिन एक मछली को अपनी पीठ पर चढ़ाकर ले जाता और शाम को तालाब पर लौट आता। इस प्रकार उसकी भोजन की समस्या हल हो गई। एक दिन केकड़े ने कहा-‘मामा, अब मेरी भी तो जान बचाइए।’ बगुले ने सोचा कि मछलियां तो वह रोज खाता है। आज केकड़े का मांस खाएगा। ऐसा सोचकर उसने केकड़े को अपनी पीठ पर बैठा लिया। उड़ते हुए वह उस बड़े पत्थर पर उतरा, जहां वह हर दिन मछलियों को खाया करता था। केकड़े ने वहां पर पड़ी हुई हड्डियों को देखा। उसने बगुले से पूछा-‘मामा, सरोवर कितनी दूर है? आप तो थक गए होंगे।’ बगुले ने केकड़े को मूर्ख समझकर उत्तर दिया-‘अरे, कैसा सरोवर! यह तो मैंने अपने भोजन का उपाय सोचा था। अब तू भी मरने के लिए तैयार हो जा।’इतना सुनते ही केकड़े ने बगुले की गर्दन जकड़ ली और अपने तेज दांतों से उसे काट डाला। बगुला वहीं मर गया। केकड़ा वापस तालाब तक पहुंचा, तो मछलियों ने पूछा तुम वापस कैसे आ गए। उसने बताया-‘वह बगुला महाठग था। उसे मैंने मार डाला।

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